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भूमि अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला, आम लोगों को बड़ी राहत Supreme Court

By Meera Sharma

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Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि संपत्ति का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद-300-A के अनुसार एक संवैधानिक अधिकार है। इस अनुच्छेद के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बिना कानूनी अधिकार के बेदखल नहीं किया जा सकता। यह निर्णय भूमि अधिग्रहण के मामलों में भू-मालिकों के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे उन्हें उचित मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार सुनिश्चित होता है।

बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर का मामला

यह निर्णय बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक मामले में आया है। इस मामले में भू-मालिकों ने कर्नाटक हाई कोर्ट के 2022 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB) ने 2003 में एक प्रोजेक्ट के लिए अधिसूचना जारी की थी और नवंबर 2005 में इन भू-मालिकों की जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया था।

मुआवजा देने में 22 वर्षों की देरी

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में गंभीर चिंता व्यक्त की है कि भूमि अधिग्रहण के 22 वर्ष बीत जाने के बाद भी भू-मालिकों को मुआवजा नहीं मिला है। न्यायालय ने यह भी कहा कि बिना मुआवजा दिए भू-मालिकों को उनकी संपत्ति से बेदखल करना सरासर गलत है और संविधान के अनुच्छेद-300-A का उल्लंघन है।

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अधिकारियों की लापरवाही पर सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB) के अधिकारियों की लापरवाही पर सख्त टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा कि अधिकारियों ने भू-मालिकों को मुआवजा देने में पूरी तरह से ढील बरती है। बाद में जब अवमानना नोटिस जारी हुआ, तभी विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) ने 2011 के सरकारी निर्देशों के आधार पर मुआवजा राशि निर्धारित करने का प्रयास किया।

पुराने रेट पर मुआवजा देना अनुचित

न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि इतने लंबे समय के बाद, 2003 के मार्केट रेट पर मुआवजा देना न्यायोचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि भू-मालिकों को वर्तमान मार्केट रेट पर मुआवजा दिया जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद-300-A के अनुसार पुराने रेट पर किसी भूमि का मुआवजा देना इस धारा का उल्लंघन है, क्योंकि यह भू-मालिकों के संपत्ति के अधिकार का पूर्ण सम्मान नहीं करता।

अप्रैल 2019 के मार्केट रेट के अनुसार मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट ने विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) को अप्रैल 2019 के मार्केट रेट के अनुसार मुआवजा तय करने का आदेश दिया है। इससे भू-मालिकों को उनके अधिकारों के अनुरूप और वर्तमान स्थिति के अनुसार उचित मुआवजा मिल सकेगा। यह निर्णय भू-मालिकों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है, जो लंबे समय से अपनी जमीन के उचित मुआवजे की प्रतीक्षा कर रहे थे।

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दो माह में नई मुआवजा राशि निर्धारित करने का आदेश

न्यायालय ने आदेश दिया है कि पक्षकारों की सुनवाई के बाद, विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) को दो महीने के भीतर नई मुआवजा राशि निर्धारित करनी होगी और इसका भुगतान संबंधित भू-मालिकों को करना होगा। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि पक्षकार नई मुआवजा राशि से संतुष्ट नहीं हैं, तो वे इसे भी चुनौती दे सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भूमि अधिग्रहण के मामलों में भू-मालिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला स्पष्ट करता है कि विकास के नाम पर भू-मालिकों के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। संपत्ति का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है, और इसका सम्मान किया जाना चाहिए। इस निर्णय से देश भर में चल रहे ऐसे कई मामलों में भू-मालिकों को राहत मिल सकती है, जहां उन्हें या तो मुआवजा नहीं मिला है या अपर्याप्त मुआवजा दिया गया है।

अस्वीकरण: यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। किसी भी कानूनी मामले के लिए कृपया योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करें।

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Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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