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किराएदार और मकान मालिक के विवाद में सुप्रीम कोर्ट का क्लासिक फैसला Supreme Court

By Meera Sharma

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Supreme Court

Supreme Court: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा मामला आया, जिसे न्यायालय ने स्वयं ‘क्लासिक केस’ की संज्ञा दी। यह मामला मकान मालिक और किरायेदार के बीच का था, जिसमें किरायेदार ने लगभग तीन दशकों तक कानूनी दांवपेंच का सहारा लेकर मकान मालिक को उसकी संपत्ति से दूर रखा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर सख्त रुख अपनाते हुए किरायेदार के खिलाफ फैसला सुनाया है। यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है।

मामला क्या था?

यह विवाद पश्चिम बंगाल के अलीपुर में एक दुकान को लेकर था। 1967 में लबन्या प्रवा दत्ता नामक मकान मालिक ने अपनी दुकान 21 साल के लिए किराए पर दी थी। 1988 में जब लीज की अवधि समाप्त हुई, तब मकान मालिक ने किरायेदार से दुकान खाली करने को कहा, लेकिन किरायेदार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। इसके बाद, 1993 में मकान मालिक ने किरायेदार को बेदखल करने के लिए सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2005 में अदालत ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया।

किरायेदार के भतीजे ने दायर किया नया मुकदमा

लेकिन यहीं मामला समाप्त नहीं हुआ। 2009 में किरायेदार के भतीजे देबाशीष सिन्हा ने एक नया मुकदमा दायर कर दिया। उसका दावा था कि वह किरायेदार का व्यापारिक साझेदार भी है, और इस आधार पर उसने दुकान पर अपना अधिकार जताया। इस नए मुकदमे ने मामले को और 12 साल तक खींच दिया। इस प्रकार, कुल मिलाकर, मकान मालिक को अपनी संपत्ति पर कब्जा पाने के लिए लगभग 30 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा और बार-बार अदालत के चक्कर काटने पड़े।

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सुप्रीम कोर्ट का ‘क्लासिक’ फैसला

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस किशन कौल और आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने इस मामले को ‘क्लासिक केस’ बताते हुए कहा कि यह मामला दर्शाता है कि कैसे कोई व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करके किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों को हड़प सकता है। अदालत ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाते हुए किरायेदार को 15 दिनों के भीतर दुकान खाली करने का आदेश दिया। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने किरायेदार पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

पिछले 11 वर्षों का बाजार दर पर किराया देने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने किरायेदार को मार्च 2010 से लेकर अब तक के समय का बाजार दर पर किराया देने का भी आदेश दिया है। यह किराया किरायेदार को तीन महीने के भीतर मकान मालिक को चुकाना होगा। इस फैसले से स्पष्ट होता है कि न्यायालय किसी भी व्यक्ति को दूसरे के संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं देता, और अगर कोई व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करता है, तो उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

न्यायिक समय की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में न्यायिक समय की बर्बादी पर भी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि किरायेदार और उसके भतीजे ने अनावश्यक रूप से मामले को लंबा खींचकर न केवल मकान मालिक को परेशान किया, बल्कि कीमती न्यायिक समय भी बर्बाद किया। इसीलिए, सुप्रीम कोर्ट ने किरायेदार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जो न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग के लिए एक दंड है।

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मकान मालिक और किरायेदार के अधिकारों का संतुलन

इस फैसले से मकान मालिक और किरायेदार के अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता भी रेखांकित होती है। जहां एक ओर किरायेदारों को किराया अवधि के दौरान सुरक्षा की आवश्यकता होती है, वहीं दूसरी ओर मकान मालिकों के भी अपनी संपत्ति पर कुछ अधिकार होते हैं। किराया अवधि समाप्त होने के बाद मकान मालिक को अपनी संपत्ति वापस पाने का अधिकार है, और कोई भी किरायेदार अनुचित तरीके से मकान पर कब्जा नहीं कर सकता।

इस ‘क्लासिक’ मामले से यह संदेश मिलता है कि न्यायिक प्रक्रिया का उद्देश्य न्याय प्रदान करना है, न कि इसका दुरुपयोग करके किसी के अधिकारों का हनन करना। न्यायालय ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा, जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करता है। यह फैसला न्याय प्रणाली में विश्वास बढ़ाने और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

डिस्क्लेमर

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य के लिए है। कानूनी सलाह के लिए कृपया किसी योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श करें। मकान मालिक और किरायेदार से संबंधित नियम राज्य के अनुसार भिन्न हो सकते हैं।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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